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Kapkapiii Review: न हॉरर-न कॉमेडी, बोरियत से भरी है श्रेयस तलपड़े की कंपकंपी, करेगी भेजा फ्राई

श्रेयस तलपड़े और तुषार कपूर स्टारर फिल्म 'कंपकंपी' सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है. दिवगंत डायरेक्टर संगीत शिवन के निर्देशन में बनी इस फिल्म को देखने का मन अगर आप बना रहे हैं तो पहले हमारा रिव्यू पढ़ लीजिए. हमने आपको बचाने के लिए 'कंपकंपी' नाम की गोली खाली है, अब आगे आपकी मर्जी.

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फिल्म 'कंपकंपी' के एक सीन में श्रेयस तलपड़े
फिल्म 'कंपकंपी' के एक सीन में श्रेयस तलपड़े
फिल्म:कपकपी
0.5/5
  • कलाकार : तुषार कपूर, श्रेयस तलपड़े
  • निर्देशक :संगीत शिवन

बॉलीवुड में चले हॉरर-कॉमेडी की बहती गंगा में हर कोई हाथ धोना चाहता है. ऐसा ही कुछ तुषार कपूर और श्रेयस तलपड़े की फिल्म 'कंपकंपी' के मेकर्स ने भी करना चाहा लेकिन बुरी तरह नाकाम रहे. दिवंगत डायरेक्टर संगीत शिवन की बनाई 'कंपकंपी', मलयालम फिल्म 'रोमांचम' के रीमेक है. फिल्म की कहानी 6 दोस्तों के बारे में है, जो एक साथ रहते हैं. इनका नाम है- मनु (श्रेयस तलपड़े), निरूप (वरुण पांडे), ननकु (जय ठक्कर), रिविन (अभिषेक कुमार), अच्युत (दिनकर शर्मा) और विजय लाल्या (धीरेंद्र कुमार तिवारी). 

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पिक्चर की शुरुआत मनु के अस्पताल के बेड में पड़े होने से होती है. उसे होश आता है और वो नर्स को बुलाता है. डॉक्टर का कहना है कि मनु को आराम करना चाहिए, लेकिन उसे अपने दोस्तों को ढूंढना है. नर्स उससे इसका कारण पूछती है तो वो बताता है कि वो अपने 5 दोस्तों के साथ एक नए घर में शिफ्ट हुआ था. मनु और उसके 5 फ्लैटमेट्स में से सिर्फ एक ही कमाऊ इंसान है, जो घर का सबसे ज्यादा खर्च उठाता है. वो कोई और नहीं बल्कि चेन्नई से आया रिविन है. उसके अलावा निरूप घर की मां है, जो सबको हड़काकर रखता है और सारा काम भी करता है. ननकु, चाय की दुकान चलाता है तो वहीं अच्युत गुटखा और दारू में खोया रहता है. विजय को बिजनेस चलाना है, जो उससे हो नहीं पा रहा.

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नए घर में शिफ्ट होकर सभी की पहचान दो लड़कियों से होती है, काव्या (सिद्धि इडनानी) और मधु (सोनिया राठी). रिविन को छोड़कर सारे लड़के इन दोनों लड़कियों के पीछे लग जाते हैं. रिविन का सच्चा प्यार उसकी गर्लफ्रेंड है, तो वो फोन से बाहर किसी लड़की को देखता ही नहीं. सभी वेल्ले हैं, तो कोई न कोई गेम शाम को खेलते हैं. वॉलीबॉल खेल-खेलकर ऊब चुके मनु को ओइजा बोर्ड के बारे में पता चलता है. इस गेम के बारे में सुनकर मनु के मन में इसे खेलने का ख्याल आता है, वो चार बातें जानकर आत्माओं को बुलाने की कोशिश करने लगता है. मनु के लिए ये खेल है, जिसमें वो अपने दोस्तों को भी शामिल कर लेता है. सभी मनु के कहने पर 'आत्मा जी दर्शन दो' के नारे लगाने लगते हैं और फिर असल में एक आत्मा उनके घर में घुस आती है. मस्ती-मजाक में शुरू हुए इस डरावने खेल को खेलने में सबकी 'कंपकंपी' छूटने वाली है.

बोरियत से भरी है फिल्म

भूत को घर में बुलाने के बाद मनु और उसके दोस्तों के साथ-साथ कुछ न कुछ अनहोनी होने लगती है. लेकिन मनु इतना डेलुलु आदमी है कि उसे इसपर भरोसा ही नहीं होता. घर का पंखा गिर रहा है, कुकर बिना गैस ऑन किया फट जा रहा है, दरवाजे खुद खुल-बंद हो रहे हैं और चाय की दुकान में आग लग गई है, लेकिन मनु को लग रहा है कि कोई भूत नहीं है. उसके दिमाग में अभी भी यही चल रहा है कि कुछ नहीं हुआ है, सब इत्तेफाक है. मुझे भी इतना डेलुलु होना है कि आंखों देखी बात को झुठला दूं. मनु को देखकर लगता है कि 'Delulu is Solulu' उसकी जिंदगी का Motto है. कोई इतना बेवकूफ कैसे हो सकता है?

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फिल्म में ढेरों किरदार हैं, लेकिन कोई भी आपके ऊपर खास असर नहीं करता. मुझे लगता है कि इसका सबसे खराब पार्ट तुषार कपूर हैं. अपनी बदली आवाज और अजीब हरकतों के साथ तुषार इस फिल्म में एंट्री करते हैं. हर बात पर उनका किरदार मुंडी हिलाता रहता है, जिसे देखकर मनु के फ्लैटमेट्स के साथ-साथ आपको भी इरिटेशन होती है. उसका मनु को 'भाया' कहना भी इरिटेटिंग है. ऊपर से तुषार के किरदार कबीर का फिल्म में होने का क्या मतलब है, ये आपको अंत तक समझ नहीं आएगा. उसके साथ जो भी हो रहा है, वो क्यों और कैसे हो रहा है, इस बात को साफ तौर पर बताया ही नहीं गया है.

कंपकंपी में कोई खास गाने और बैकस्कोर नहीं है. इस फिल्म में कोई खास हॉरर मटेरियल नहीं डाला गया. न ही इसमें खास कॉमेडी है. कॉमेडी के नाम पर किरदारों को ऊल जलूल डायलॉग पकड़ाए गए हैं. ऊपर से वो एक दूसरे को गालियों पर गालियां दे रहे हैं. गालियों को भी थिएटर में फिल्म के आने के हिसाब से बदला गया है. कोई किरदार ऐसा नहीं है, जिससे आप जुड़ पाएं और जिसे देखकर आपको मजा आए. पिक्चर को देखते हुए लगता है कि इसे बस बना दिया गया है. इसका कोई मकसद नहीं है. स्क्रीनप्ले बेहद कमजोर है और एक्टर्स की परफॉरमेंस भी. ये पिक्चर इतनी खराब है कि इसे देखकर मुझे कंपकंपी छूट गई.

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इस फिल्म के डायरेक्टर संगीत शिवन ने इससे पहले 'क्या कूल हैं हम' और 'अपना सपना मनी मनी' जैसी फिल्मों को लगभग 20 साल पहले बनाया था. दोनों ही फिल्में मजेदार थीं. हालांकि इस बार शिवन अपना जादू नहीं चला पाए. दुर्भाग्य से 'कंपकंपी' उनकी आखिरी फिल्म है.

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