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Thug Life Review: कमल हासन की दमदार एक्टिंग भी नहीं बचा सकी फिल्म, बेहद सुस्त है मणिरत्नम का गैंगस्टर ड्रामा

'नायकन' जैसी आइकॉनिक फिल्म देने के 37 साल बाद कमल हासन और मणिरत्नम की आइकॉनिक जिओदी एक बार फिर साथ आई है. 'ठग लाइफ' का टीजर, ट्रेलर और गाने बहुत पसंद किए गए थे. फिल्म में कमल के अलावा भी कई दमदार नाम थे. मगर क्या ये फिल्म इन सारे बड़े नामों का कद जस्टिफाई कर पाई? आइए बताते हैं...

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'ठग लाइफ' रिव्यू: बेहद सुस्त है मणिरत्नम का गैंगस्टर ड्रामा
'ठग लाइफ' रिव्यू: बेहद सुस्त है मणिरत्नम का गैंगस्टर ड्रामा
फिल्म:ठग लाइफ
1.5/5
  • कलाकार : कमल हासन, STR, त्रिशा, नासर, अभिरामी, अशोक सेल्वन, अली फजल
  • निर्देशक :मणिरत्नम

मणिरत्नम भारतीय सिनेमा का वो नाम हैं जिनकी बनाई फिल्म के साथ 'निराशाजनक' शब्द लिखने की बात शायद कोई सिनेमा लवर कभी सोच भी नहीं सकता. अबतक की उनकी सबसे कमजोर फिल्मों में भी एक फिल्म फैन के दिमाग को ईंधन देने वाला कुछ न कुछ निकल ही आता था. मगर सबसे पावरफुल फिल्ममेकर्स की ये खासियत होती है कि अपनी फिल्म के साथ 'निराशाजनक' शब्द लिखने का मौका भी वो खुद ही बेहतर तैयार कर सकते हैं. और कमल हासन स्टारर 'ठग लाइफ' मणिरत्नम की तरफ से फैन्स को दिया गया वही मौका है. 

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एक फिल्म जिसमें कमल हासन गैंगस्टर का लीड किरदार निभा रहे हों. फिल्म में तमिल इंडस्ट्री के दमदार यंग स्टार STR उनके साथी हों. नासर, अशोक सेल्वन और त्रिशा जैसा दमदार एक्टर्स हों. और इस दमदार कास्ट को मणिरत्नम जैसा आइकॉनिक डायरेक्टर डायरेक्ट कर रहा हो... तो ऑडियंस की उम्मीदों का लेवल बहुत ऊपर रहना ही है. मगर 'ठग लाइफ' जिस तरह निराश करती है उसकी उम्मीद शायद ही टीजर-ट्रेलर देखने के बाद कभी किसी ने की होगी. 

गैंगस्टर्स के ड्रामा की कहानी 
'ठग लाइफ' एक गैंगस्टर रंगराय शक्तिवेल (कमल हासन) की कहानी है, जिसने अपने भाई (नासर) के साथ मिलकर एक गैंगस्टर मंडली खड़ी की है. कहानी 1998 के फ्लैशबैक से शुरू होती है जहां ये गैंगस्टर बंधु एक पुलिस शूटआउट में फंसे हैं. पुलिस को उनके अड्डे तक पहुंचाया है एक दूसरे गैंगस्टर सदानंद (महेश मांजरेकर) ने. इसी शूटआउट के बीच एक अखबार बांटने वाला और उसके बच्चे भी फंस जाते हैं. अखबार बांटने वाले की गोली लगने से मौत हो जाती है. 

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उसके बेटे को इस अफरातफरी से बचाकर अपनी ढाल बनाते हुए शक्तिवेल भाग निकलता है. जबकि उसकी बच्ची इस अफरातफरी में खो जाती है. अखबार बांटने वाले के बेटे अमर (STR) को शक्तिवेल अपने बेटे की तरह बड़ा करता है और उससे वादा करता है कि चाहे कितना भी वक्त लगे कभी ना कभी उसकी बहन को खोज निकालेगा. 

अब बात 2016 में आ गई है, जहां सदानंद मंत्री बन चुका है. उसके बेटे (रोहित सराफ) के साथ अफेयर की वजह से शक्तिवेल के भाई की बेटी आत्महत्या कर चुकी है. दुश्मनी बढ़ गई है, सदानंद का बेटा मारा जा चुका है. शक्तिवेल जेल जा रहा है और जाते-जाते अमर को अपनी जगह खड़ा कर गया है. कुछ गैर-जरूरी सीक्वेंस और शादी ब्याह के एक फंक्शन के बाद शक्तिवेल पर जानलेवा हमला होता है. वो बच तो जाता है मगर उसे शक है कि इसमें अमर भी शामिल था. 

ये बात सच है या नहीं ये दिखाने में मणिरत्नम कुछ और वक्त खर्च करते हैं. फिर कुछ देर बाद शक्तिवेल पर नेपाल में एक हमला होता है और ऐसा लगता है कि अब वो नहीं बचेगा. मगर वो ना सिर्फ जिंदा है बल्कि इस बार बौद्ध भिक्षुओं से फाइट करने की स्पेशल ट्रेनिंग भी लेकर लौटा है. अब शक्तिवेल अपने ऊपर हमला करने वाले, अपने ही गैंग के लोगों को खोज रहा है. यहां देखें 'ठग लाइफ' का ट्रेलर:

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क्या इसमें अमर भी है? क्या अमर को बच्चे की तरह पालने वाला शक्तिवेल उसपर गोली चला पाएगा? क्या अमर ने शक्तिवेल के साथ कोई छल किया है? और किया है तो क्यों किया है? क्या अमर को कभी उसकी खोई हुई बहन चंदा मिलेगी? 'ठग लाइफ' इन्हीं सवालों के जवाब देने की कोशिश करती है. असल में फिल्म सवालों के जवाब पहले देती है और जो हुआ वो क्यों हुआ, ये बताने पर फोकस करती है. मगर मणिरत्नम ने इस नैरेटिव स्ट्रक्चर को जिस लाइन पर चलाया है, वो आपको नींद दिलाने लगता है, खासकर सेकंड हाफ में. 

'ठग लाइफ' की कमियां
सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि शक्तिवेल एंड गैंग कभी गैंगस्टरबाजी करते दिखते ही नहीं. कहानी में सदानंद एक मंत्री है और उसके बेटे को मार देने पर भी बदले में जैसा रिएक्शन आता है वो बहुत नॉन सीरियस लगता है. सदानंद के अलावा और किसी से भी ये गैंगस्टर दल की कोई दुश्मनी ही नहीं दिखती. ना ही कहानी कभी इन्हें ऐसी सिचुएशन में डालती है जहां दिखे कि ये किस तरह के गैंगस्टर हैं. 

'ठग लाइफ' एक गैंगस्टर ड्रामा फिल्म है, मगर इसकी कहानी गैंगस्टर्स से ज्यादा उनके पारिवारिक ड्रामा पर फोकस करने लगती है. गैंगस्टर फिल्म की जान होती है मुख्य किरदारों की एंट्री. 'ठग लाइफ' में सभी की एंट्री बहुत साधारण है. ऐसी सिचुएशंस ही फिल्म में नहीं हैं जहां आप किसी किरदार से इम्प्रेस हों. 

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शक्तिवेल का इंद्राणी (त्रिशा) के साथ एक्स्ट्रा-मैरिटल अफेयर कहानी में पूरी तरह गैर जरूरी है. शक्तिवेल की बेटी की शादी वाला पूरा सीक्वेंस, कहानी में जिस वजह से इस्तेमाल किया गया है, वो वजह आपको फिल्म में नजर ही नहीं आती. ऐसे कई सीक्वेंस इस फिल्म में हैं जो बहुत गैर-जरूरी लगते हैं और ये काटे जाते तो 'ठग लाइफ' कम से कम 20 मिनट छोटी हो सकती थी. अमर का किरदार पूरी तरह डेवलप ही नहीं होता. वो शक्तिवेल की परछाईं से निकलकर कभी ऐसा कुछ करता ही नहीं जिससे उसके कैरेक्टर में आपको कोई गहराई या कोई परत नजर आए. 

राइटिंग की ये कमी आपको कहीं भी किरदारों से कनेक्ट ही नहीं करने देती. इंटरवल पॉइंट पर शक्तिवेल के अधमरा होने तक कहानी फिर भी कुछ दिलचस्प लगती है और आप देखना चाहते हैं कि आगे क्या होने वाला है. मगर इंटरवल के ठीक बाद जिस तरह उसकी जान बचती है वो मजेदार नहीं लगता. बदला लेने वापस लौटा शक्तिवेल भी असरदार नहीं लगता. उसकी कोई कन्वर्सेशन ऐसी नहीं है जिसमें उसके किरदार की नाराजगी या अपनों से ठगे जाने का गुस्सा झलके. शक्तिवेल की टक्कर का किरदार अमर बहुत फीका है. उसका टशन या स्वैग क्या है, वो किस तरह का बिहेव कर सकता है, बाकि गैंगस्टर्स से वो किस तरह अलग है, ऐसा कुछ भी फिल्म में नजर नहीं आता. 

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'ठग लाइफ' में ए आर रहमान का म्यूजिक और बैकग्राउंड स्कोर है. फिल्म के म्यूजिक एल्बम को जनता का बहुत प्यार मिल रहा है और ट्रेलर के बाद बैकग्राउंड स्कोर की बहुत तारीफ हुई थी. लेकिन फिल्म में गाने और स्कोर दोनों बेअसर लगते हैं. 

दमदार है एक्टर्स का काम 
कमल हासन के काम में आपको नजर आता है कि वो लेजेंड क्यों कहे जाते हैं. राइटिंग की दिक्कत से आपको उनका किरदार शायद बहुत दिलचस्प ना लगे, लेकिन एक्टिंग से कमल ने शक्तिवेल को काफी मजबूत बनाया है. शक्तिवेल की बॉडी लैंग्वेज, उसके रिएक्शन मजेदार हैं. STR ने भी अपनी एक्टिंग से ही वो माहौल बनाया है कि स्क्रीन पर उन्हें देखने में इंटरेस्ट आता है. 

फिल्म की बाकी कास्ट ने भी अपने-अपने किरदारों को निभाया पूरी नीयत से है चाहे त्रिशा हों या अभिरामी और नासर. अशोक सेल्वन, ऐश्वर्या लक्ष्मी और अली फजल ने भी अपने किरदारों में काम दमदार किया. मगर 'ठग लाइफ' की राइटिंग ने इन तीनों को जिस तरह वेस्ट किया है, वो देखने में जितना निराशजनक लगता है उतना ही अजीब भी. 

कुल मिलाकर 'ठग लाइफ' एक ऐसा आईडिया था जो शक का बीज मन में पड़ जाने पर उगी नफरत की पौध को दिखाना चाहता था. राइटिंग की कमियों को देखने पर ऐसा लगता है कि स्क्रिप्ट में शक्तिवेल को सुपर-गैंगस्टर दिखाने के चक्कर में फिल्म का नैरेटिव स्ट्रक्चर और सब-प्लॉट गड़बड़ हुए हैं. मणिरत्नम के साथ राइटिंग में कमल हासन का भी क्रेडिट है और इन दोनों को ही तय करना है कि किससे कहां चूक हुई है. हालांकि, फिल्म का प्रोडक्शन डिजाईन और सिनेमेटोग्राफी जैसी चीजें मजबूत हैं. मगर जब कहानी ही मजेदार नहीं है तो सॉलिड फ्रेम्स में आदमी देखे क्या! 

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'ठग लाइफ' एक ऐसे आईडिया के तौर पर याद रखी जाएगी जिसमें स्क्रीन पर एक बेहतरीन फिल्म बनने का दम था और इसकी दमदार कास्ट से बहुत यादगार किरदार निकल सकते थे. मगर... ये 'मगर' इतना बड़ा हुआ कि पूरी फिल्म निगल गया! 

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