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Ekdant Sankashti Chaturthi 2025: एकदंत संकष्टी चतुर्थी आज, इस विधि से करें गणपति जी की पूजा

Ekdant Sankashti Chaturthi: ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 16 मई को एकदंत संकष्टी चतुर्थी है. इस दिन व्रत रखने और पूजा करने से गणेश जी की विशेष कृपा मिलती है. आइए जानते हैं एकदंत संकष्टी चतुर्थी की पूजा विधि.

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एकदंत संकष्टी चतुर्थी 2025
एकदंत संकष्टी चतुर्थी 2025

Ekdant Sankashti Chaturthi 2025: हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है. इस दिन भगवान गणेश की पूजा की जाती है और चंद्र दर्शन करने के बाद ही व्रत का पारण किया जाता है. 16 मई यानी आज एकदंत संकष्टी चतुर्थी है. इस दिन व्रत रखने और पूजा करने से गणेश जी की विशेष कृपा मिलती है. आइए आपको इस पावन दिन पर भगवान गणेश की पूजन विधि और शुभ मुहूर्त बताते हैं.

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एकदंत संकष्टी चतुर्थी का मुहूर्त

ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 16 मई को सुबह 4 बजकर 2 मिनट से से लेकर 17 मई को शाम 5 बजकर 13 मिनट तक रहेगी. ऐसे में उदया तिथि को देखते हुए एकदंत संकष्टी चतुर्थी का व्रत 16 मई यानी आज रखा जाएगा. आज सुबह 11 बजकर 51 मिनट से दोपहर 12 बजकर 45 मिनट तक अभिजीत मुहूर्त रहेगा, जिसमें आप गणपति पूजन कर सकते हैं. चंद्रोदय का समय रात 09 बजकर 52 मिनट है. 

एकदंत संकष्टी चतुर्थी की पूजन विधि

एकदंत संकष्टी चतुर्थी के दिन सबसे पहले पूजा स्थल की सफाई करें. फिर गणेश जी की मूर्ति तो स्थापित करके तीन बार आचमन करें. इसके बाद गणेश जी को पंचामृत से स्नान कराएं और मूर्ति के सामने दीपक जलाएं. साथ ही गणेश जी को हरे रंग के वस्त्र, जनेऊ, चंदन, दूर्वा, सुपारी, अक्षत, धूप, दीप, पीले फूल और फल अर्पित करें. 

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गणेश जी को दूर्वा अर्पित करते समय श्री गणेशाय नमः दूर्वांकुरान् समर्पयामि मंत्र का जाप करें. इसके बाद गणेश जी को मोदक और लड्डू का भोग लगाएं. फिर गणेश जी की आरती करें और सभी लोगों को प्रसाद बांटें.

इन मंत्रों का जाप करने से प्रसन्न होंगे गणपति

1. कदंताय विद्‍महे, वक्रतुंडाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात।।
2. ॐ गं गणपतये सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा ॥
3. ॐ गंग गणपतये नमो नमः
4. वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरुमे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।
5. एकदंताय शुद्धाय सुमुखाय नमो नमः।
प्रपन्न जनपालाय प्रणतार्ति विनाशिने।।
6. ॐ श्रीं गं सौभाग्य गणपतये।
वर्वर्द सर्वजन्म में वषमान्य नमः॥
7. ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गणपतये
वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा॥

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