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Early Monsoon: दो हफ्ते पहले कैसे धमक पड़ा मॉनसून? तैयारी से पहले तबाही का समझ लीजिए कारण

2025 का मॉनसून अपनी जल्दी और व्यापक शुरुआत के कारण खास है. ग्लोबल वॉर्मिंग ने कम हिमपात और बढ़ी नमी के माध्यम से इसमें योगदान दिया, लेकिन MJO, न्यूट्रल ENSO और न्यूट्रल IOD जैसे जलवायु कारकों की भूमिका भी उतनी ही महत्वपूर्ण रही. जून में शुष्क हवाओं के कारण मानसून की प्रगति धीमी हो सकती है.

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मुंबई में भारी बारिश और जल जमाव के बीच से गुजरते लोग. (सभी फोटोः PTI/AP)
मुंबई में भारी बारिश और जल जमाव के बीच से गुजरते लोग. (सभी फोटोः PTI/AP)
  • 2025 में मानसून की जल्दी शुरुआत: इस साल मॉनसून केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र में सामान्य से दो हफ्ते पहले पहुंचा. 
  • विशाल क्षेत्र में एक साथ शुरूआत: 24 मई को मॉनसून ने केरल से महाराष्ट्र तक बड़े क्षेत्र को कवर किया, जो 54 साल बाद हुआ.
  • जलवायु और मानवजनित कारक: ग्लोबल वॉर्मिंग, कम हिमपात और बढ़ी नमी ने जल्दी मॉनसून में योगदान दिया.
  • प्रमुख जलवायु कारक: मैडेन-जूलियन ऑसिलेशन (MJO), न्यूट्रल एल नीनो, और न्यूट्रल इंडियन ओशन डायपोल (IOD) ने मॉनसून को बढ़ावा दिया.
  • संभावित रुकावट: जून की शुरुआत में मध्य-अक्षांश की शुष्क हवाएं मॉनसून की प्रगति को धीमा कर सकती हैं.

Early monsoon

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इस साल 2025 में दक्षिण-पश्चिम मॉनसून ने केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र में सामान्य तारीख (1 जून) से करीब दो हफ्ते पहले यानी 24 मई को दस्तक दी. खास बात यह है कि 24 मई को मॉनसून ने केरल से लेकर महाराष्ट्र और बेंगलुरु जैसे शहरों तक एक साथ बड़े क्षेत्र को कवर किया.

यह घटना 54 साल बाद दोहराई गई, जब 1971 में भी मॉनसून ने कर्नाटक और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में एक साथ शुरुआत की थी. लेकिन इस जल्दी और व्यापक शुरुआत के पीछे क्या कारण हैं? क्या यह ग्लोबल वॉर्मिंग का असर है या कुछ और?  

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क्या यह असामान्य है?

मॉनसून का जल्दी आना और पहले ही दिन इतने बड़े क्षेत्र को कवर करना असामान्य नहीं है, लेकिन यह बहुत आम भी नहीं है. 1971 में भी ऐसा हुआ था, जब मॉनसून ने कर्नाटक और महाराष्ट्र के बड़े हिस्से को एक साथ कवर किया था. इस साल भी मॉनसून की सक्रियता 2 जून तक बनी रहने की उम्मीद है, जिससे यह महाराष्ट्र और पूर्वी राज्यों में और आगे बढ़ेगा.

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हालांकि, जून की शुरुआत में मॉनसून की प्रगति धीमी हो सकती है, क्योंकि मध्य-अक्षांश की शुष्क हवाएं (मिड-लैटिट्यूड ड्राई एयर मासेस) नमी वाली मॉनसूनी हवाओं को बाधित करती हैं. यह रुकावट हाल के वर्षों में अधिक देखी गई है, जो मॉनसून की अनियमितता को बढ़ा रही है.

Early monsoon

मॉनसून को जल्दी लाने वाले कारक

मॉनसून का आना और उसकी प्रगति कई जटिल कारकों पर निर्भर करती है. ये कारक दो तरह के होते हैं...

जलवायु कारक (प्राकृतिक) और मानवजनित कारक (ग्लोबल वॉर्मिंग जैसे मानव द्वारा प्रेरित बदलाव). भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, ग्लोबल वॉर्मिंग का मॉनसून जैसे बड़े सिस्टम पर सीमित प्रभाव पड़ता है, लेकिन यह पूरी तरह से नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता. 

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ग्लोबल वॉर्मिंग और जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

यूरेशिया और हिमालय में कम हिमपात: ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण 2025 में जनवरी से मार्च तक यूरेशिया और हिमालय में हिमपात 1990-2020 की औसत से 15% कम रहा. कम हिमपात से सतह की चमक (एल्बेडो) कम होती है, जिससे सतह अधिक गर्म होती है. इस साल मई में यह गर्मी मानसून की हवाओं को तेज करने में मददगार रही.

वायुमंडल में बढ़ी नमी: ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण हर 1 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने पर वायुमंडल में 6-8% अधिक नमी आती है. 2025 में वैश्विक तापमान प्री-इंडस्ट्रियल स्तर से 1.2 डिग्री सेल्सियस अधिक है. अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में मई में उच्च नमी ने बादल बनने और मानसून की जल्दी शुरुआत को बढ़ावा दिया. कर्नाटक-गोवा तट पर पिछले हफ्ते एक चक्रवाती सिस्टम ने भी इसे और तेज किया.

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मजबूत सोमाली जेट और क्रॉस-इक्वेटोरियल प्रवाह: सोमाली जेट मॉरीशस और मेडागास्कर से शुरू होने वाली निचले स्तर की तेज हवाएं हैं, जो अरब सागर के रास्ते भारत के पश्चिमी तट (केरल, कर्नाटक, गोवा, महाराष्ट्र) तक नमी लाती हैं. 2025 में मई में यह जेट असामान्य रूप से मजबूत थी, जिसका कुछ प्रभाव ग्लोबल वॉर्मिंग से भी हो सकता है.

जलवायु कारक

मैडेन-जूलियन ऑसिलेशन (MJO): MJO एक 30-60 दिन का मौसमी चक्र है, जो मॉनसून के सक्रिय और शुष्क चरणों को प्रभावित करता है. इसे 8 चरणों में बांटा जाता है, जिसमें चरण 2 और 3 मानसून को बढ़ावा देते हैं. मई 2025 में MJO चरण-3 में था, जिसने दक्षिण भारत में बादल बनने और बारिश को बढ़ाया. 25 मई तक यह चरण-4 में पहुंचा, जिसने भारतीय महासागर से नमी को और मजबूत किया. यह मॉनसून की जल्दी और व्यापक शुरुआत का प्रमुख कारण रहा.

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एल नीनो का प्रभाव: एल नीनो समुद्र की सतह के गर्म तापमान को दर्शाता है, जो दक्षिण-पश्चिम मॉनसून को कमजोर करता है. 2025 में मई में एल नीनो-सदर्न ऑसिलेशन (ENSO) न्यूट्रल रहा, जिसका मतलब है कि न तो एल नीनो और न ही ला नीना प्रभावी थी. यह न्यूट्रल स्थिति मॉनसून के लिए अनुकूल रही.

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इंडियन ओशन डायपोल (IOD): IOD भारतीय महासागर के पश्चिमी (गर्म) और पूर्वी (ठंडे) हिस्सों के तापमान के अंतर को दर्शाता है. सकारात्मक IOD मॉनसून को मजबूत करता है, जबकि नकारात्मक IOD इसे कमजोर करता है. 2025 में IOD न्यूट्रल है, लेकिन अगस्त-सितंबर में हल्का सकारात्मक IOD बनने की संभावना है, जो मॉनसून को और बढ़ावा दे सकता है.

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मॉनसून की प्रगति में रुकावट

IMD के अनुसार, मानसून की शुरुआत भले ही जल्दी और तेज रही हो, लेकिन जून की शुरुआत में इसकी प्रगति धीमी हो सकती है. ऐसा शुष्क हवाओं के कारण होता है, जो नमी वाली मॉनसूनी हवाओं को बाधित करती हैं. हाल के वर्षों में ऐसी रुकावटें अधिक देखी गई हैं, जैसे 2024 में चक्रवात रेमल ने बंगाल की खाड़ी में मॉनसून को 19 दिन तक रोका था.

विशेषज्ञों की राय

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव, एम. रविाचंद्रन: हम मॉनसून की भविष्यवाणी के लिए पांच कारकों का उपयोग करते हैं, जिनमें यूरेशिया का हिमपात एक है. कम हिमपात का मानसून पर 33% सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, लेकिन सटीक कारण हमेशा स्पष्ट नहीं होते.

IMD के डीजी, मृत्युंजय महापात्रा: मॉनसून की जल्दी शुरुआत MJO के चरण-3 और 4, न्यूट्रल ENSO और मजबूत सोमाली जेट जैसे कारकों का परिणाम है. हालांकि, जून में शुष्क हवाएं प्रगति को धीमा कर सकती हैं.

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